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कैरियर मोटिवेशन की कहानी: “अरमान से आसमान तक”
अरमान से आसमान तक-सपनों को पूरा करने का रास्ता कभी सीधा और आसान नहीं होता। लेकिन जो हार नहीं मानते, वही अपनी मंज़िल तक पहुँचते हैं। यह कहानी है *अर्जुन* नाम के एक युवक की, जिसने कठिनाइयों, असफलताओं और तानों के बावजूद हार न मानकर अपने कैरियर में ऊँचाई हासिल की।
बचपन का सपना
अर्जुन एक छोटे से कस्बे में पैदा हुआ। उसके पिता दर्जी थे और माँ गृहिणी। घर की आर्थिक स्थिति बहुत साधारण थी। बचपन से ही अर्जुन के मन में एक सपना था—“बड़ा होकर इंजीनियर बनूँगा और अपने परिवार का जीवन बदल दूँगा।”
लेकिन हालात ऐसे थे कि किताबें खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते थे। कई बार उसे दोस्तों से पुरानी किताबें लेनी पड़तीं।
ताने और रुकावटें
अर्जुन की मेहनत देखकर कुछ लोग उसका मज़ाक उड़ाते थे।
* पड़ोसी कहते—“तेरे बापू दर्जी हैं, तू इंजीनियर बनेगा? ज़्यादा सपने मत देख।”
* दोस्त भी चिढ़ाते—“तेरे पास मोबाइल तक ढंग का नहीं है, इंजीनियरिंग क्या करेगा?”
अर्जुन को यह बातें चुभतीं, लेकिन उसने तय कर लिया था कि वह हार नहीं मानेगा।
कठिन तैयारी
हाईस्कूल के बाद अर्जुन ने इंजीनियरिंग एंट्रेंस परीक्षा की तैयारी शुरू की।
* दिन में कॉलेज और शाम को दर्जी की दुकान पर पिता का हाथ बँटाता।
* रात को देर तक पढ़ाई करता।
* कई बार नींद और थकान से आँखें बंद हो जातीं, लेकिन फिर भी किताब उठा लेता।
उसके पास कोचिंग का खर्चा नहीं था। इसलिए वह लाइब्रेरी में जाकर पुराने नोट्स पढ़ता और यूट्यूब से मुफ्त लेक्चर देखता।
पहली असफलता
परीक्षा का दिन आया। अर्जुन ने पूरी लगन से पेपर दिया। लेकिन रिज़ल्ट आया तो वह पास नहीं हो पाया।
* उसके माता-पिता रो पड़े।
* पड़ोसी और रिश्तेदार ताने देने लगे—“कहा था ना, यह बड़े सपनों के लिए नहीं बना।”
अर्जुन टूट चुका था, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह बोला—
*"अगर एक बार असफल हुआ हूँ, तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं सपनों के लायक नहीं हूँ। यह तो सीख है कि और बेहतर मेहनत करनी है।"*
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दूसरी कोशिश
अर्जुन ने एक साल और मेहनत की।
* इस बार उसने अपनी कमजोरियों पर खास ध्यान दिया।
* गणित और फिज़िक्स में उसने पहले की गलतियों को सुधारा।
* दिन-रात की मेहनत के बाद उसने दोबारा परीक्षा दी।
इस बार नतीजा अलग था—वह अच्छे रैंक के साथ इंजीनियरिंग कॉलेज में चुन लिया गया।
कॉलेज का संघर्ष
कॉलेज में एडमिशन तो मिल गया, लेकिन फीस चुकाना मुश्किल था। अर्जुन ने छात्रवृत्ति (Scholarship) के लिए आवेदन किया।
* साथ ही, वह पार्ट-टाइम ट्यूशन पढ़ाने लगा।
* दिन में क्लास और लैब, रात को बच्चों को पढ़ाना और अपनी पढ़ाई।
धीरे-धीरे उसके टीचर्स और सहपाठी भी उसकी मेहनत से प्रभावित होने लगे।
सफलता की उड़ान
इंजीनियरिंग पूरी होने के बाद अर्जुन को एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी का ऑफर मिला।
* पहली सैलरी का चेक उसने अपने पिता को दिया और कहा—
*“पापा, अब आपको दर्जी की दुकान पर काम करने की ज़रूरत नहीं।”*
उसकी आँखों में ख़ुशी और गर्व के आँसू थे।
अर्जुन ने साबित कर दिया कि अगर सपनों के लिए जुनून और मेहनत हो, तो हालात चाहे जैसे भी हों, मंज़िल पाई जा सकती है।
सीख
1. असफलता अंत नहीं, बल्कि नए प्रयास की शुरुआत होती है।
2. मेहनत, धैर्य और आत्मविश्वास से बड़े से बड़ा सपना पूरा किया जा सकता है।
3. परिस्थितियाँ चाहे जैसी हों, सच्ची लगन कभी खाली नहीं जाती।
निष्कर्ष
अर्जुन की कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो अपने करियर में संघर्ष कर रहा है।
सपनों को पाने के लिए केवल दो चीज़ों की ज़रूरत होती है—*अटूट विश्वास और अथक परिश्रम।*
और जब ये दोनों मिल जाएँ, तो कोई मंज़िल दूर नहीं रहती।